मैं जब-जब खोली आंखें,
तो भोले को पाया है,
फिर भोले को जब तक देखा,
नयनो को भरमाया है।
मैने जब-जब….
सांझ ढली फिर रात हुई,
पल-पल इतनी खास हुई,
सपने में भी तब भोले से,
मन भरकर फिर बात हुई।
मैने जब-जब….
नींद खुली जब सपना टूटा,
सारा जग मै भूल गया,
माटी के कण-कण ने मानों,
भोले का मुख चूम लिया।
मैने जब-जब….
मन सपनों में खोया था या,
सपना मन में खोया था,
असमंजस से जब उबरा तो,
खुद भोले में खोया था।