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भोले को पाया – मोनिका चौधरी

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मैं जब-जब खोली आंखें,
तो भोले को पाया है,

फिर भोले को जब तक देखा,
नयनो को भरमाया है।

मैने जब-जब….
सांझ ढली फिर रात हुई,
पल-पल इतनी खास हुई,

सपने में भी तब भोले से,
मन भरकर फिर बात हुई।

मैने जब-जब….
नींद खुली जब सपना टूटा,
सारा जग मै भूल गया,
माटी के कण-कण ने मानों,

भोले का मुख चूम लिया।
मैने जब-जब….

मन सपनों में खोया था या,
सपना मन में खोया था,
असमंजस से जब उबरा तो,
खुद भोले में खोया था।

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